Saturday, October 4, 2008

मौत.......


अरमानों की मुस्कानों पर ,
गम का बादल छा जाता है ।
खुशियों का सूरज ,उगने से ,
पहले ही डूब जाता है जब ।
आंसुओं की घटायें , आंखों से ,
क्यूँ बरस आती हैं कभी ।
बेवक्त जहाँ से किसी का ,
जनाजा उठ जाता है जब ।
मनुष्य तो केवल ठगा सा ,
महसूस करता है तब ।
जिंदगी को मौत से ,
छला जाता है जब ।
हर रात में किसी बात में
उसका साया उसका साथ ।
मन को तडपाती है , वह
दुनिया से चला जाता है जब ।
फिर इतना भी क्यूँ प्यार हो ?
किसी को किसी से ।
मौत पर ही ऐतबार हो ,
केवल जिंदगी को जब ।
लेकिन ना समझ पायेगा मन ,
एक दिन बिछड़ जायेगा तन ।
छूट जायेंगे सब अपने-पराये ,
और रह जायेगा बस एक मसान ।
बस ! ऐ मन ! तू यह जान ले,
इस बात को पहचान ले ।
वहां मौत का बसेरा है ,
जहाँ है जीवन सा वन ।

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