Monday, October 6, 2008

कैसा यह संसार है..........


कैसा यह संसार है ?
जहाँ साम्प्रदायिकता एक त्यौहार है।
यहाँ मन्दिर-मस्जिद मेले सजते ,
और सजता हर गुरद्वार है।
राम-नाम का उदघोष और अल्लाह की पुकार है,
यहाँ दो पाटों के बीच अब मरता भी करतार है ।
कैसा यह संसार है,जहाँ........... ।
कैसा भीषण ज्वार यह,
जो करता केवल लहू से प्यार है
चाहे मन्दिर टूटे ,चाहे मस्जिद टूटे,
लेकिन टूटा अब अंतर्ध्यान है
कैसे बना हुआ हैवान ,
एक इंसा को जला रहा इंसान है ।
कैसा यह संसार है ,जहाँ............. ।
कैसी है यह यज्ञ-आहुति ?
जहाँ लाशों की भरमार है ।
ना हिंदू ना मुस्लिम पर ,
यह मानव पर हुआ प्रहार है ।
अहिंसा की धरती पर,
क्यूं हिंसा का यह वार है ?
गांधी और मानवता,
आज दोनों की यह हार है ।
कैसा यह संसार है,जहाँ............. ।
साम्प्रदायिकता की इस ज्वाला में जलते ,
एक बच्चे की चित्कार है ,
मुझको भी जहाँ से प्यार है
हाँ ! मुझको भी जीने का अधिकार है ..........
( गुजरात के गोधरा काण्ड के बाद लिखी यह कविता )

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