Friday, October 3, 2008

सफर....आख़िर क्यूँ ?

सुना है कि एक नए सफर की शुरूआत तभी होती है ,जब एक सफर ख़त्म हो जाए ...........सो
हमने भी एक सफर शुरू करने की ठान ली है । सफर जो ख़तम हुआ ,वह था .....मेरी पहली
नौकरी का .....जो औरों की तरह ही मुझे भी ताउम्र याद रहेगी ,याद रहेंगी वह खट्टी-मीठी यादें
जो अपने अजीज और दुश्मनों के साथ रहकर मिली ......सफर के शुरू होने के पीछे भी एक सफर
ही है ......बेरोजगारी का सफर ,सबक देने वाला सफर ,बनने और बिगड़ने का सफर ,मौजों और
बेमौत मंजर का सफर ,अनगिनत काली रातों का सफर ,फकीरी का सफर ,सुर और सुरा का
सफर ,पल-पल बनते और बिगड़ते रिश्तों का सफर ..........और ना जाने कितनी ही यादों का
सफर ,जो हमेशा याद रहेगा ..........
कई बार होता है कि आपके अपने ही विचार आपको अन्दर तक
झकझोर देते हैं ,फिर अचानक ही हवा हो जाते हैं। ऐसे में सफर एक जरिया बना अपनी बातों को
संजोने का। अपने खाली दिमाग की बत्ती जलती रहे ,अनाप-शनाप बातों से पाला न पड़े ,कुछ करने
के काबिल बना रहूँ ,बार-बार नौकरी की याद ना सताये ,लोगों की सवालिया निगाहें बार-बार ख़ुद को
शर्मिंदा होने पर मजबूर ना करें ,इसलिए समय रहते सफर को अपना हमसफ़र बना लिया ............. ।

1 comment:

Nirvana said...

:) Good One ...keep up the spirit!!