Monday, October 6, 2008

एक दिन घर लौटकर आऊंगा मैं.........

एक दिन घर लौटकर आऊंगा मैं,
फिर अपनी दास्ताँ सबको सुनाऊंगा मैं।
इन आंखों में, जगती रातों ने जो सपने हैं देखे,
देख लेना एक सुबह सच कर दिखाऊंगा मैं।
हर रोज,हर पल नयी तन्हाई सी है ,
मगर मौजों की वादियाँ लेकर आऊंगा मैं।
घर से निकलता हूँ जब तो पूछते हैं सब,
फिर से कब तलक लौटकर आऊंगा मैं।
काश! मैं खुदा होता तो सब कुछ बयां करता,
कैसे यह बता दूँ कि ,किधर जाऊँगा मैं।
आज तनहा और बेबस हूँ ,मगर सच्चाई है यह,
कई दिलों की रोशनी बनकर आऊंगा मैं।
ये मशाल जो दिल में जलाई है हमने,
देखना कितने अंधेरों को मिटाऊंगा मैं।
राहे मंजिल एक दिन मुझको,मिलेगी जरूर,
हर सफर पर, इक दास्ताँ लिखकर जाऊँगा मैं।
एक दिन घर लौटकर आऊंगा मैं................ ।

1 comment:

Sandeep Singh said...

हर सफर की एक दिन दास्तां लिख के जाऊंगा मैं....दोस्त मुझे भरोसा है। और मेरे जैसे बहुतों को है ये भरोसा। इस भरोसे की एक बड़ी वजह तुम तो हो ही, साथ ही है लोगों का खुद पर यकीन। जो ये सोचते हैं कि तुमसे तुम्हारी दास्तां जबरन लिखवा लेंगे। बस वक्त ने राह में एक धवल चादर डाल दी है...थोड़ा सा इंतजार है कि हवा का एक तेज झोंका उसे ऊंचे दरख्त की किसी साख पर टांग दे। बाकी.......बहुत कुछ।