Tuesday, October 7, 2008

आख़िर कब तक ..........?

आख़िर कब तक ....
और कितनी बार उठेंगी यह
निगाहें और क्यूँ उठेंगी ?
एक दूसरे की तरफ़ ।
आख़िर और कितने सवाल ,
कब तक और कितनी बार पूछेंगी ?
हर सुबह ,हर दोपहर ,हर शाम ।
एक-दूसरे को देखने की
आदत सी होती जा रही है।
शायद जवाब ना भी मिले ,
मगर यह निगाहें समझती हैं
एक -दूसरे की भाषा ....
और जवाब भी निगाहों -निगाहों में ही
मिल जाता है ,कितनी शिद्दत से
वो निगाहें आपस में बातें करती हैं ,
फिर दोनों के चहरे पर एक हलकी
मुस्कान बिखेर कर ,
एक दूसरे से जुदा हो जाती हैं ।
शायद बहुत प्यार है उनमे ,
या फिर वो हम पर
ताने देने के अंदाज में ,
हमारी बेबसी पर ,हमारे मायूस होते
खूबसूरत चेहरों को बहुत ,
कुछ कहकर चली जाती हैं ।
जब आती हैं दोबारा तो फिर वही
अनगिनत सवाल होते हैं जिनसे
हम जाने कितने दिनों से लड़ रहे हैं ।
कभी-कभी शून्य में भी ,
कितने ही सवालों के जवाब
अनायास ही मिल जाते हैं और
यह जवाब ही हमारे सवालों की
एक नयी श्रंखला दे जाते हैं ,
उनसे जूझने के लिए .....
अपने सपने को जिन्दा रखने के लिए .........
(ये निगाहें मेरी और मेरे एक अजीज दोस्त की हैं)

1 comment:

piyush said...

nigahon mein hee admi bahut kuch kah dalta hai. shukra manaiye kuch log to nigahon mein kah daalte hai.......