Thursday, October 9, 2008

जो ना कह सके......

जिन्दगी हमें बहुत कुछ देती है और बहुत कुछ छीन भी लेती है । लेकिन हम सब उस चीज को लेकर कितना परेशान रहते हैं जो हमसे छीन लिया गया । इस फेर में पड़कर हम उसको भी नजरअंदाज कर देते हैं जो अब भी हमारे पास है और जो हमारी हमेशा के लिए ना सही कुछ वक्त के लिए भी हो जाए तो हमारी दुनिया ही बदल जाए ।वैसे तो मनुष्य जीवन ही अपने आप में एक तोहफा है लेकिन और भी बहोत कुछ है जिनसे यह जीवन हमें प्यारा और खूबसूरत लगने लगता है ।हर एक का जीवन किसी न किसी से जरूर प्रभावित रहता है ऐसा ही एक दुनिया का नायाब तोहफा है "दोस्ती' ,जिसने मेरे जीवन के हर मोड़ पर एक अहम् रोल अदा किया है और मेरा विश्वास है कि यह आगे भी जारी रहेगा ............ ।दोस्ती..........कहने को एक छोटा सा लफ्ज ,लेकिन ना जाने कितनी अनमोल चीजों से भी सुंदर और कीमती है यह । अगर दो लफ्जों के इस शब्द को परिभाषित करने की कोशिश भी करें तो शायद दुनिया के शब्दभंडार भी कम पड़ जाएँ ।दोस्ती एक एहसास है जिसे वही महसूस कर सकता है जिसने इसको जिया है ,दोस्ती एक ऐसी खुशी है जो सारी खुशियों से भी बढ़कर है ,दोस्ती एक जरूरत है जो पूरी होने पर भी कम लगती है । दोस्ती एक दर्द है जो मिले तो अपना वजूद आजमाती है । दोस्ती हमारी आँख है जो हम पर हर वक्त नजर रखती है । दोस्ती में लोग धड़कनें भी दे दिया करते हैं। दोस्ती एक सफर है जो ताउम्र रहे तो मंजिलों की जरूरत ही ना पड़े । दोस्ती जान देती भी है और जान लेती भी है । दोस्ती अजनबी को भी अपना बना देती है । दोस्ती अनजाने में ही ना जाने क्या क्या दे जाती है । दोस्ती एक विश्वास है ,एक भरोसा है ,जो टूटे तो सारी खुशियाँ बिखरने सी लगती हैं । दोस्त अगर बिछडे तो आंसुओं का सैलाब आ जाता है ,दोस्त ना हों तो जिंदगी अधूरी सी लगती है कुछ भी अच्छा नही लगता ,कोई मौसम आए-जाए ,सब कुछ एक जैसा नीरस लगता है । दोस्ती एक जज्बात है जो इस रिश्ते की डोर को मजबूत बनाती है । दोस्ती दिल और दिमाग से नही चलती ,ये तो बस अपने ही अंदाज में चलती है ।किसी ने सच ही कहा है .......
ये मुमकिन है कि दिल के पास रहा कर अक्ल,
लेकिन कभी-कभी इसे तनहा भी छोड़ दिया कर।
इसका ना कोई निश्चित रास्ता है ना कोई निश्चित सफर ,बड़े ही टेढे - मेढे रास्ते हैं इसके ,और फ़िर दोस्ती की राह सीधी हो तो चलने का मजा ही कहाँ ?कहते भी हैं कि दोस्ती पर भरोसा हो तो जहन्नुम का सफर भी सुहाना लगे । किसी शायर या कवि कि इन पंक्तियों का मतलब भी साफ़ है कि जो भी फैसले हम दिल और दिमाग से लेते हैं वो अमूमन सही ही होते हैं मगर दूसरी पंक्ति में वह दोनों को अलग-अलग रखने की बात करता है ,शायद दोस्ती भी यही मांग करती है । दोस्ती के भी अपने -अपने दौर होते हैं ,अपनी एक उम्र होती है ,अपने अंदाज और अपने मायने होते हैं । बचपन की दोस्ती ,किशोरावस्था की दोस्ती ,प्रौढावस्था की दोस्ती और बुढापे की दोस्ती ,इन सब के साथ ही दोस्ती का एक दौर वह भी होता है जो आपके अपने करियर के साथ ही शुरू होती है ।यह दौर भी आपकी दोस्ती का एक अहम् हिस्सा होता है जिसमे शायद बाकी चारों दौर के दोस्त मिलें भी या ना भी ,लेकिन इसका सफर लंबा होता है । दोस्ती जाति-धर्म से परे है, इसकी अपनी कोई भाषा नही है ,रूप-रंग भी नही है, यह किसी देश-दुनिया की सीमाओं से भी परे है , यह किसी भाषा की मोहताज नही। वैसे दोस्ती को इतने कम शब्दों में कह पाना मुमकिन नही , लेकिन जिसके मिलने से चेहरे पर खुशी हो ,जिसके जाने से अधूरापन लगने लगे,मुश्किल हालात में जिसकी याद सताए , कोई सफलता मिलने पर जिसके साथ वो खुशी का पल बांटना चाहें, वही दोस्ती है । समाज में किसी व्यक्ति की एक ख़ास भूमिका होती है जिसे केवल वही निभा सकता है ,ठीक उसी प्रकार दोस्ती की भी हमारे जीवन में एक ख़ास भूमिका है जिसे केवल एक दोस्त ही निभा सकता है ।

1 comment:

डॉ.भूपेन्द्र कुमार सिंह said...

aapkey comments padhey Anilki diary mey,acchi lagi aapki bahvnayen.
aapney ye sher likha hai
mumkin hai ki dil ke paas rahey paasbaney akl,
lekin kabhi kabhi isey tanha bhi chod den/
meri hardik shubh kamnayen
sader,
dr.bhoopendra
rewa mp