Friday, October 10, 2008
नारी मन.........
Thursday, October 9, 2008
जो ना कह सके......
Wednesday, October 8, 2008
ऐलान-ए-ज़ंग........
ऐसा क्यूँ .....?
Tuesday, October 7, 2008
आख़िर कब तक ..........?
Monday, October 6, 2008
कैसा यह संसार है..........
जहाँ साम्प्रदायिकता एक त्यौहार है।
यहाँ मन्दिर-मस्जिद मेले सजते ,
और सजता हर गुरद्वार है।
राम-नाम का उदघोष और अल्लाह की पुकार है,
यहाँ दो पाटों के बीच अब मरता भी करतार है ।
कैसा यह संसार है,जहाँ........... ।
कैसा भीषण ज्वार यह,
जो करता केवल लहू से प्यार है
चाहे मन्दिर टूटे ,चाहे मस्जिद टूटे,
लेकिन टूटा अब अंतर्ध्यान है
कैसे बना हुआ हैवान ,
एक इंसा को जला रहा इंसान है ।
कैसा यह संसार है ,जहाँ............. ।
कैसी है यह यज्ञ-आहुति ?
जहाँ लाशों की भरमार है ।
ना हिंदू ना मुस्लिम पर ,
यह मानव पर हुआ प्रहार है ।
अहिंसा की धरती पर,
क्यूं हिंसा का यह वार है ?
गांधी और मानवता,
आज दोनों की यह हार है ।
कैसा यह संसार है,जहाँ............. ।
साम्प्रदायिकता की इस ज्वाला में जलते ,
एक बच्चे की चित्कार है ,
मुझको भी जहाँ से प्यार है
हाँ ! मुझको भी जीने का अधिकार है ..........
( गुजरात के गोधरा काण्ड के बाद लिखी यह कविता )
एक दिन घर लौटकर आऊंगा मैं.........
चोरनी ...........
Saturday, October 4, 2008
मौत.......
गम का बादल छा जाता है ।
खुशियों का सूरज ,उगने से ,
पहले ही डूब जाता है जब ।
आंसुओं की घटायें , आंखों से ,
क्यूँ बरस आती हैं कभी ।
बेवक्त जहाँ से किसी का ,
जनाजा उठ जाता है जब ।
मनुष्य तो केवल ठगा सा ,
महसूस करता है तब ।
जिंदगी को मौत से ,
छला जाता है जब ।
हर रात में किसी बात में
उसका साया उसका साथ ।
मन को तडपाती है , वह
दुनिया से चला जाता है जब ।
फिर इतना भी क्यूँ प्यार हो ?
किसी को किसी से ।
मौत पर ही ऐतबार हो ,
केवल जिंदगी को जब ।
लेकिन ना समझ पायेगा मन ,
एक दिन बिछड़ जायेगा तन ।
छूट जायेंगे सब अपने-पराये ,
और रह जायेगा बस एक मसान ।
बस ! ऐ मन ! तू यह जान ले,
इस बात को पहचान ले ।
वहां मौत का बसेरा है ,
जहाँ है जीवन सा वन ।
जागो मीडिया जागो ........
एक मीडियाकर्मी होने के नाते ,आज मैं अपने सभी उन बंधुओं को याद दिलाना चाहता हूँ कि अब भी वक्त है .......लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ होने के नाते आप सब की ये नैतिक जिम्मेवारी बनती है कि पहले आप ख़ुद को सुधारें फिर किसी को बनाने या बिगाड़ने की बात करिएगा । आप भी भली भांति समझते होंगे कि आज की मीडिया किस तरह अंधाधुंध अपनी ही मस्त चाल में चल रहा है ,खासकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया। कहने को पत्रकारिता आम आदमियों की बजाय एक जिम्मेवारी भरा काम है ,लेकिन आप भी जानते होंगे ,समझते होंगे कि यह बात अब पुरानी हो चुकी है,आज की तारीख में यह व्यवसाय से ज्यादा कुछ नही । चैनल और अखबार मालिकों पर अब देश की जिम्मेदारी से ज्यादा टी आर पी और अखबार के सर्कुलेशन का बोझ है। यह बोझ किसी ना किसी रूप में संस्थान में काम करने वाले कर्मियों पर ही थोपा जाता है ,सो कर्मचारी भी अपनी रोजी -रोटी के वास्ते कैसे भी हो यह बोझ ढोता है और वह भी इस कलयुगी रंग में ख़ुद को ढाल लेता है। इसके सिवा उसके पास कोई चारा भी नही । पहले से ही अनगिनत बोझों से लदा हुआ ,वह चैनल के भीतर कमरतोड़ मेहनत करने के बाद भी अपनी कमर टूटने से नही बचा पाता । इस आपाधापी से भरी पत्रकारिता में आम आदमी की उसकी अपनी पहचान कहीं खो सी जाती है ,वह आम आदमी से अब विशेष की श्रेणी में गिना जाने लगता है ,क्यूंकि अब वह भी लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहे जाने वाले मीडिया का एक अभिन्न हिस्सा हो चुका है ,भले ही उसका ख़ुद का स्तम्भ जड़ से हिल चुका हो । अब उसने एक नए समाज में कदम रख दिया है ,भले ही यह उसका आखिरी कदम हो ,लेकिन कोई रास्ता भी तो नही बचता जिसपे चलकर वह ख़ुद के वजूद को बचा सके ।
मीडिया में कदम रखते ही कोई आम आदमी ,आम आदमी के बजाय विशेष की श्रेणी में आ जाता है और इस नए समाज के सारे गुन-दोष सीखता है मसलन खबरें लिखने के बजाय खबरें बनाना ,किसी ख़बर की तह तक जाने की कोशिश में उस ख़बर की हत्या कर देना ,ख़बर लिखने की जगह गॉसिप परोसना ,किसी की भी परवाह किए बिना कुछ भी दिखाना ,सच की जगह झूट को सजा-बजा कर लोगो के सामने रखना । ख़बर बनाने के लिये मुर्दे की कब्र भी खोदने से गुरेज न करना ,ख़बर ना होते हुए भी ख़बर बना देना और जरूरत पड़े तो दुनिया को भी तबाही का मंजर दिखा कर उनके होश फाक्ता कर देंगे । ऐसी है आज की इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ,भला हो प्रिंट मीडिया का जिसमे आज भी बहुत कुछ बाकी है ......... । पिछले लगभग आठ- दस सालों में मीडिया में जो क्रान्ति आई है ,उसके पीछे कहीं ना कहीं मोटी रकम और रुतबे का ख़ास स्थान है । यही वजह है की इस ओर कदम रखने वाला हर आदमी जल्द से जल्द अपनी तरक्की चाहता है ,इसके लिए उसे कुछ भी कीमत चुकानी पड़े । मीडिया भी राजनीति का अखाडा बन चुका है जिसमे चैनल के आकाओं से लेकर उसमे काम करने वाल पियून भी आपसी प्रतिस्पर्धा में जी रहे हैं ,या कहे आपस में लड़ रहे हैं। हर सीनियर जूनियर को काम सिखाने के बजाय ,अपने सीनियर होने का एहसास दिलाने में ज्यादा व्यस्त दिखाई पड़ता है ,काम न करने वाला काम पूरा करने वाले को गालियाँ देता नजर आता है ,हर सीनियर के पीछे दो- चार चमचों की फौज हमेशा रहती है ,हर कोई एक-दूसरे की टांग खींचने में लगा हुआ है .............ऐसे में आप यदि इन सब गुणों से संपन्न हैं तो ठीक वरना भगवान भी आपको डूबने से नही बचा सकता ।
आज मैं उन सभी मीडिया आकाओं से कुछ सवाल पूछना चाहता हूँ .......
1.क्या आप ये अभी तक तय कर पाये हैं कि चैनल पर दिखाना क्या है ?
२.क्या आपको काम करने वाले दिखते नही या आप उन्हें दूसरों की नजर से देखते हैं ?
3.क्या आपको आपके सहकर्मियों की गतिविधियों का पता रहता है ?
4.क्या आपको ये पता है कि कुछ लोग काम ना करने की बजाय राजनीति में मशगूल रहते हैं ?
5.यदि आप को ऊपर के सवालों के जवाब मालूम हैं तो फ़िर आप कोई कदम क्यूं नही उठाते ?
6.क्या आप भी टी आर पी की दौड़ में शामिल हैं ?
७.क्या आप भी ख़बरों की बजाय सनसनी में यकीन करते हैं ?
8.क्या मीडिया में आप का भी कोई माई-बाप है ?
9. क्या बिना डिग्री के भी इस मीडिया में कई लोग अच्छा कर रहे हैं ?
10. मीडिया में आने के लिए क्या कोई मानक बन पाया है ?
कहने को आप भी कह सकते हैं कि यह केवल मेरे दिल की भड़ास हो सकती है ,कुछ हद तक ये सच भी हो सकता है लेकिन ये भी सच है की मेरी तरह ही ना जाने कितने साथी इस सच्चाई से वास्ता रखते हैं। मैं अपनी बात इस उम्मीद के साथ ख़तम करता हूँ कि आने वाले दिन मीडिया के लिए एक साफ़-सुथरा भविष्य लेकर आयेंगे ।